Tuesday, 18 February 2014

Death Penalty In India Inching Closer Towards Abolition?

http://www.bhaskar.com/article-ht/NAT-death-penalty-in-india-inching-closer-towards-abolition-4525340-NOR.html
राजीव गांधी के तीन हत्यारों की फांसी की सज़ा को उम्रकैद में तब्दील किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश में फांसी की सज़ा को लेकर बहस तेज होने के आसार हैं। फैसला आने के बाद पूर्व आईपीएस किरण बेदी ने कहा भी कि जिन लोगों ने इतनी लंबी सजा झेल ली है, उन्‍हें फांसी दिया जाना अमानवीय है। उनका कहना है कि सबसे बड़े लोकतंत्र में मौत की सजा पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। फांसी की सज़ा को लेकर बहस को पंजाब पुलिस के पूर्व डीजी केपीएस गिल ने आगे बढ़ाया है। गिल ने 1993 में हुए बम विस्फोट के दोषी देविंदर पाल सिंह भुल्लर की फांसी की सज़ा पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'भुल्लर की पत्नी का अपने पति की मानसिक सेहत ठीक न होने को बुनियाद बनाकर फांसी की सज़ा को उम्र कैद की सज़ा में तब्दील करने की मांग कर रही हैं। क्या सभी आतंकवादियों को मानसिक समस्या नहीं होती है?'  वर्ष 2001-11 के बीच 10 सालों में भारतीय अदालतों में 1,455 लोगों को मौत की सज़ा सुनाई गई। औसतन हर वर्ष 132.27 लोगों को यह सज़ा मिली। लेकिन इनमें से ज्यादातर सजाएं बाद में चलकर उम्रकैद में तब्दील कर दी गईं। इन 10 वर्षों में आतंकवाद से जुड़े मामलों को छोड़ दिया जाए तो सिर्फ धनंजय चटर्जी को फांसी की सज़ा दी गई। धनंजय को अगस्त, 2004 में 14 साल की लड़की के साथ बलात्कार करने के मामले में दोषी पाए जाने पर फांसी दी गई थी।

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